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Details, Fiction and baglamukhi

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ह्रीं बीज॑ सर्वदा पातु बुद्धिन्द्रियवचांसि मे॥ ११ ॥ इदं कवचमज्ञात्वा भजेद्‌ यो बगलामुखीम्‌॥ ३७ ॥ सौवर्णासनसंस्थितां त्रिनयनां पीताशुकोल्लासिनीम्‌ । उन्नीस सौ पिचानबे सन् की, श्रावण शुक्ला मास। अपुत्रो लभते पुत्रं धीरं शूरं शतायुषम्‌॥ १८ ॥ मक्खन से इस कवच को अभिमंत्रित करके बंध्या स्त्री को खिलाने से, वह पुत्रवती हो https://waylondjhea.loginblogin.com/37463369/a-simple-key-for-baglamukhi-unveiled

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